Saturday, March 20, 2010

इन्फ़ॉर्मर टाईम्स INFORMER TIMES

अपनी हसरत तमाम हो जाये काश ऐ दिल वो राम हो जाये ।
सुबह से चाहे शाम हो जाये क़िस्सा ऐ ग़म तमाम हो जाये ।।
चश्म मै मेरे नाम हो जाये तर्क मीना व जाम हो जाये ।
अम्बरी जुल्पफगर बिखर जाये शाम से पहले शाम हो जाये ।।
आज साक़ी घटाआंे के सदके़ महर रिन्दो पे आम हो जाये ।
क्या ज़रूरत है साग़रो मय की मस्त नजरो से काम हो जाये ।।
इश्क की ये पहली मन्जिल है सर झुकाकर सलाम हो जाये ।
अपनी पहचान रख कहां और कब जिन्दगी की शाम हो जाये ।।
ऐ फात्मा इश्क की ये मेराज हुसन गर हम कलाम हो जाये ।
रईस पफात्मा एम ए0 बी0 एड0 एम0 एड0
संवाददाता
दैनिक बरन पोस्ट
उपसम्पादक इन्फॉर्मर
टाईम्स बुलन्दशहर